बेशक अल्लाह तआला अल क़रीब है..
हे वह ज़ात जो हर उस व्यक्ति के क़रीब है जो उस से माँगता है... हे वह ज़ात जो हर उस व्यक्ति के क़रीब है जो उस से आशा करता है।
हे वह ज़ात जो हर उस व्यक्ति के क़रीब है जो उस से माँगता है...हे वह ज़ात जो हमारे गले के नस से भी अधिक क़रीब है।
हे क़रीब ज़ात तू अपनी उनसियत और अपने कलाम के ज़रिये हमारे ऊपर एहसान कर...
{और जब मेरे बंदे मेरे बारे में आप से सवाल करें तो मैं क़रीब हूँ“।}[अल बक़राः 186].
” अल क़रीब “
बुलंद होने के बावजूद अपने ज्ञान और जानकारी के ज़रिये क़रीब रहने वाली ज़ात।
” अल क़रीब “
हर उस व्यक्ति से अल्लाह तआला क़रीब है जो उस से माँगे,वह दया करता है,उम्मीदें पूरी करता है,दुख दूर करता है और परेशान हाल की दुआ क़बूल करता है।
” अल क़रीब “
हर उस व्यक्ति से अल्लाह तआला क़रीब है जो उस से तोबा करे,उस से लव लगाये,अल्लाह तआला गुनाह माफ करता है और तोबा स्वीकार करता है।
” अल क़रीब “
जिन इबादतों के ज़रिये बंदा अल्लाह तआला की निकटता ढूँडता है उसे वह स्वीकारता है और बंदा जिस प्रकार अल्लाह तआला के निकट आता है उसी प्रकार अल्लाह तआला भी बंदे के निकट आता है।
” अल क़रीब “
अपने बंदो के हालात से परिचित है,वह अपने ज्ञान और उन्हें घेरने के कारण उन से क़रीब है,और कोई भी चीज़ उस से छुपी नहीं है।
” अल क़रीब “
अपनी दया व करम,रक्षा और सहायता एवं ताईद से क़रीब है,और यह निकटता उस के दोस्तों अर्थात मोमिनांे के साथ खास है।
” अल क़रीब “
अंजाम के एतबार से उस के सब बंदे उसी की ओर लौटते हैं।
{और हम उस इन्सान से तुम्हारे मुक़ाबले में ज़्यादा क़रीब होते हैं“।}[अल वाके़आः 85].ß अल क़रीब “
रूह उस की निकटता से मानूस होते हैं और उस के जि़क्र से आबाद रहते हैं।
बेशक अल्लाह तआला अल क़रीब है..
”अल क़रीब “.. हर एक व्यक्ति से अपने ज्ञान,अनुभव,निगरानी,देखने और उसे घेरे हुये होने के कारण क़रीब है।