इखलास मुख्लिसीन की जन्नत और मुŸाक़ीन (अल्लाह से डरने वालांे) की रूह और बंदे और उस के रब के बीच एक राज़ है,इख्लास वस्वसों और रियाकारी को समाप्त करता है,इख्लास ये है कि आप अपने अमल से केवल अल्लाह की प्रसन्नता चाहें,आप के दिल में इस के अतिरिक्त कोई उद्देश्य न हो,न लोगों की प्रशंसा और तारीफ की चाहत हो और न आप को अल्लाह तआला के अतिरिक्त किसी और से किसी बदले की आशा हो।
इख्लास अमल की सुंदरता और उस की पूर्णता का नाम है,इख्लास दुनिया की सब से अज़ीज़ और प्यारी चीज़ है,इख्लास यह है कि केवल एक अल्लाह की इबादत और उस की पैरवी करें, इख्लास यह है कि मखलूक़ की निगाहों को भूल कर हमेशा अल्लाह की ओर से होने वाली निगरानी को याद रखें,जो काम अल्लाह के लिये होगा तो अल्ला तआला उस का बदला ज़रूर देगा,और जो काम अल्लाह के अतिरिक्त किसी और के लिये होगा तो वह काम बेकार शुमार होगा,पैग़म्बरने फरमायाः
«निःसंदेह अमलों का दारोमदार निय्यतों पर है,और हर इन्सान को वही कुछ मिलने वाला है जिस की उस ने निय्यत की है,जो इन्सान दुनिया प्राप्त करने के लिये या किसी महिला से निकाह के लिये हिज्रत करेगा तो उस की हिज्रत उसी चीज़ के लिये मानी जायेगी जिस के लिये उस ने हिज्रत की है।» (बुखारी)।
इख्लास का दीन में बड़ा ऊँचा मक़ाम है, कोई चीज़ इस का मुक़ाबला नहीं कर सकती,चुनांचे कोई अमल बिना इख्लास के क़बूल नहीं है,अल्लाह तआला र्कुआने करीम की अनेक आयतों में हमें इख्लास पैदा करने की नसीहत की है,उस में से एक अल्लाह तआला का ये कथन हैः {उन्हें इस के सिवाय कोई हुक्म नहीं दिया गया कि केवल अल्लाह की इबादत करें,उसी के लिये धर्म को शुद्व कर रखें“।}[अल बय्यिनाः 5].
और अल्लाह तआला ने फरमायाः {कह दीजिये कि बेशक मेरी नमाज़,और मेरी सभी इबादतें और मेरा जीना मरना सारी दुनिया के रब अल्लाह के लिये हैं, उस का कोई शरीक नहीं,मुझे इसी का हुक्म दिया गया है,और मैं पहला हूँ जिन्होंने सब से पहले उसे माना“}।[अल अनआमः 162-163].
और अल्लाह तआला ने फरमायाः {उस ने जिं़दगी और मौत को इस लिये पैदा किया कि तुम्हारा इम्तेहान ले कि तुम में सें अच्छे अमल कौन करता है“}।[अल मुल्कः 2].
और अल्लाह तआला ने फरमायाः {बेशक हम ने इस किताब को हक़ के साथ आप की ओर उतारा तो आप केवल अल्लाह ही की इबादत करें,उसी के लिये दीन को शुद्व करते हुये,सुनो अल्लाह ही के लिये खालिस इबादत करना है“।} [अज़्ज़ुमरः 2-3].
और अल्लाह तआला ने फरमायाः {तो जिसे भी अपने रब से मिलने की उम्मीद हो उसे चाहिये कि नेकी के काम करे और अपने रब की इबादत में किसी को भी शरीक न करे“।} [अल कहफः 110]