3) डरः

 3) डरः

3) डरः

”और अल्लाह तआला अपने आप से डरा रहा है“। {आले इमरानः 30}.

इस का अर्थ

अल्लाह तआला से डरने का अर्थ महान दिली इबादतें हैं,अल्लाह तआला ने फरमायाः {यह शैतान ही है जो अपने दोस्तों से डराता है,इस लिये तुम उन से न डरो और मुझ से ही डरो अगर तुम ईमान वाले हो“।}[आले इमरानः 175].

और इस आयते करीमा में अकेले अल्लाह तआला से डरने की अनिवार्यता है, और इस बात की ताकीद है कि यह ईमान के लिये आवश्यक है,तो जिस क़दर बंदे का ईमान होगा उसी क़दर वह अल्लाह तआला से डरेगा।

और मोमिनों की माँ आयशा रजि़अल्लाहु अन्हा से रिवायत है,कहती हैंः «मैंने नबी से इस आयत के विषय में पूछाः {और जो लोग देते हैं,जो कुछ देते हैं और उन के दिल काँपते हैं“।}
[अल मूमिनूनः 18] क्या ये वह लोग हैं जो शराब पीते हैं और चोरी करते हैं?! फरमायाः नहीं ऐ सिद्दीक़ की बेटी,परन्तु ये वह लोग हैं जो रोज़ा रखते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं,सदक़ा देते हैं और वह इस बात को लेकर भयभीत रहते हैं कि कहीं इन की ये इबातदतें क़बूल न की जायें।» (त्रिमिज़ी),

अल्लाह तआला से डरने के कारण (असबाब)ः

1- सर्वशक्तिमान अल्लाह की इज़्ज़त और उस का सम्मान करना,क्यांेकि उन्हंे अल्ला तआला,उस के नामों और उस की विशेषताआंे का ज्ञान है। {अपने रब से जो उन के ऊपर है कपकपाते रहते हैं“।}[अन्नहलः 50].

2- इस बात से डरना कि कहीं उन का ठिकाना उस चीज़ की ओर न बने जिसे यह अप्रिय रखते हैं,जैसे नर्क का दुखदाई अज़ाब जो बुरा ठिकाना है।

3- उन वाजिबात को लेकर कोताही का एहसास करना जो उस के ऊपर हैं, इस बात को जानते हुये कि अल्लाह तआला सब कुछ जानता है,देखता है और उस पर शक्ति रखता है,गुनाह को इस निगाह से न देखंे कि वह छोटा है बल्कि इस निगाह से देखें कि वह कितना महान है जिस की नाफरमानी की जारही है।

4- अल्लाह तआला के उस कलाम में विचार करना जो वईद और धमकी से भरा हुआ है उस व्यक्ति के लिये जो अल्लाह की नाफरमानी करे, और उस की शरीअत से मुँह मोड़े,और उस रोशनी को छोड़ दे जिसे उस की ओर भेजा गया ।

5- अल्लाह तआला और उस के रसूल के कलाम में विचार करना और उस के रसूल की सीरत में ग़ौरो फिक्र करना।

6- अल्लाह तआला की महानता में विचार करना,क्यांेकि जो उस में विचार करेगा उसे अल्लाह तआला की विशेषताओं और उस की बड़ाई का ज्ञान होगा,और जिस का दिल अल्लाह तआला की महानता की गवाही देगा उसे अल्लाह तआला से डरने का एहसास हो जायेगा और निःसंदेह वह अल्लाह तआला से भयभीत रहेगा, अल्लाह तआला ने फरमायाः {और अल्लाह तआला अपने आप से डरा रहा है“।}
[आले इमरानः 28].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {और उन लोगों ने जैसा सम्मान अल्लाह का करना चाहिये था नहीं किया,सारी धरती क़यामत के दिन उस की मुðी में होगी और सारा आकाश उस के दायें हाथ में लपेटे हुये होंगे“।}[अज़्ज़ुमरः 67].

अल्लाह तआला से डरना उस के विषय में ज्ञान को अनिवार्य है,और उस के विषय में ज्ञान का होना उस से डरने को अनिवार्य (लाजि़म) है और उस से डरना उस की फरमाँबरदारी को लाजि़म है।

7- मौत और उस की सखती के विषय में विचार करना और इस बात का ज्ञान होना कि इस से किसी को छुटकारा नहीं हैः {कह दीजिये कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो वह तो तुम तक ज़रूर पहुँचेगी“।}[अल जुमाः8].तो यह अल्लाह तआला से डर को वाजिब करता है,नबी ने फरमायाः «लज़्ज़तों को चूर चूर करने वाली चीज़(मौत) को अधिकतर याद करो,क्यांेकि किसी ने जीवन की तंगी में इसे याद नहीं किया मगर वह उस पर कुशादा हो गई,और जिस ने कुशादागी में याद किया उस पर तंग होगई» (तबरानी).

8- मरने के बाद,क़ब्र अथवा उस की हौलनाकी के विषय मंे विचार करना,नबी ने फरमायाः «मैंने तुम्हें क़ब्रों की ज़्यारत से रोका था तुम उस की ज़्यारत करो क्यांेकि ये तुम्हें दुनिया से बे रग़बत करती है और आखिरत की याद दिलाती है»
(इब्ने माजा),

और हज़्रत बुरा से रिवायत है,कहते हैंः «हम रसूलुल्लाह के साथ एक जनाज़े में थे,आप एक क़ब्र के किनारे बैठे,और आप रोने लगे यहाँ तक कि मिट्टी गीली हो गई,फिर फरमायाः ऐ मेरे भाइयो इस जैसी चीज़ के लिये तय्यारी कर लो» (इब्ने माजा),

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {ऐ लोगो अपने रब का भय रखो और उस दिन का भय रखो जिस दिन पिता अपने पुन्न को कोई लाभ न पहँुचा सकेगा और न पुन्न अपने पिता को तनिक भी लाभ पहुँचाने वाला होगा,याद रखो अल्लाह का वादा सच्चा है,देखो तुम्हें सँासारिक जीवन धोके में न डाले और न धोकेबाज़ तुम्हें धोके में डाल दे“।}[लुक़मानः 33].

9- छोटे छोटे गुनाहों के अंजाम के विषय में विचार करना जिसे लोग हक़ीर समझते हैं,जब कि नबी ने उस की मिसाल एक ऐसे क़ौम से दी है जिन्हों ने एक घाटी में पड़ाव डाला,उस के बाद एक व्यक्ति इस लकड़ी को ढूँड लाया और दूसरा दूसरी लकड़ी ले आया यहाँ तक कि उन के पास इतनी लकड़ी हो गई जिस से वे अपनी रोटी पका लें,और यहाँ पर लकडि़यों और आग जलाने और गुनाहों और उन चीज़ों के बीच सह-संबंध है जो गुनहगारों के चमड़ों के जलने का कारण बनेंगीः {जब उन की खालें (चर्म) पक जायेंगी“।}[अन्निसाः 56].

10- बंदे को यह जान लेना चाहिये कि उस के और उस की तोबा के बीच अचानक मौत आड़ बन सकती है,और उस समय अफसोस से कोई लाभ न होगा, अल्लाह तआला ने फरमायाः {यहाँ तक कि जब उन में से किसी की मौत आने लगती है तो कहता है कि हे मेरे रब मुझे वापस लौटा दे“।}[अल मूमिनूनः 99].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {और तू उन्हें इस दुख और मायूसी के दिन का डर सुना दे“।}[मरयमः 39].

11- बुरे अंत के बारे में विचार करना, अल्लाह तआला ने फरमायाः {फरिश्ते उन के मुंह और कमर पर मार मारते हैं।}[अल अनफालः 50].

12- ऐसे लोगों के साथ बैठो जो तुम्हारे अन्दर अल्लाह का डर और खौफ बिठा दें, अल्लाह तआला ने फरमायाः {और अपने आप को उन्हीं के साथ रखा करें जो अपने रब को सुबह और शाम पुकारते हैं और उसी के मुंह की चाहना करते हैं“।}
[अल कहफः 28].

अल्लाह तआला से डरना ये दो चीज़ों से संबंधित हैः

क- उस के अज़ाब से डरनाः

अर्थात जिन्हें उस के साथ शिर्क करने,उस की नाफरमानी करने और उस से डरने और फरमाँबरदारी से दूर हो जाने पर अज़ाब की धमकी दी है।

ख- अल्लाह तआला से डरनाः

अर्थात ज्ञानियों और अल्लाह को पहचानने वालों का डरः {और अल्लाह तआला अपने आप से डरा रहा है“।}[आले इमरानः 28].

और जब जब अल्लाह तआला का ज्ञान बढ़ेगा,उस का डर भी अधिक होगा,अल्लाह तआला ने फरमायाः {अल्लाह से उस के वही बंदे डरते हैं जो जानकार हैं“।}[फातिरः 28].

क्यांेकि जब वे अपने को और उस के नामों अथवा विशेषताओं को अच्छी तरह जान लेंगे तो वे डर को तरजीह देगें अर्थात प्रभाव दिल पर होगा फिर उस का प्रभाव अंगों पर भी ज़ाहिर होगा।

जब डर दिलों में बस जायेगा तो दिल से उस की इच्छाओं को जला देगा और उस से दुनिया को दूर कर देगा।

अल्लाह तआला से डरने के फलः

क- दुनिया मंे

1-यह धरती में सशक्तिकरण और ईमान अथवा आत्मविश्वास के कारणों में से है क्योंकि जब आप को वह चीज़ मिल जायेगी जिस का आप से वादा किया गया है तो भरोसा अधिक बढ़ जायेगा, अल्लाह तआला ने फरमायाः {और काफिरों ने अपने रसूलों से कहा कि हम तुम्हें देश से निकाल देंगे या तुम फिर से हमारे धर्म में लौट आओ,तो उन के रब ने उन की ओर वह्य भेजी कि हम उन ज़ालिमों का ही नाश कर देंगे,और उस के बाद हम खुद तुम्हें धरती पर बसायेंगे,यह है उन के लिये जो मेरे सामने खड़े होने से डर रखें और मेरी चेतावनी से डरते रहें“}[इब्राहीमः 13-14].

2- नेक अमल और उस में इखलास अथवा दुनिया में उस के बदले कुछ न लेने पर उभारेगा,जिस की वजह से प्रलोक में उस के सवाब में कुछ कमी न होगी,अल्लाह तआला ने फरमायाः {हम तो तुम्हंे केवल अल्लाह की खुशी के लिये खिलाते हैं,तुम से न बदला चाहते हैं और न शुक्रिया,बेशक हम अपने रब से उस दिन का डर रखते हैं जो तंगी और कठोरता वाला होगा“।}[अल इन्सानः 9-10].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {उन घरों में जिन के ऊँचा करने का और वहाँ अपना नाम लिये जाने का अल्लाह ने हुक्म दिया है वहाँ सुबह और शाम अल्लाह की तस्बीह बयान करते हैं,ऐसे लोग जिन्हे तिजारत और खरीदो फरोख्त अल्लाह के जि़क्र से और नमाज़ क़ायम करने और ज़कात अदा करने से ग़ाफिल नहीं करती,उस दिन से डरते हैं जिस दिन बहुत से दिल और बहुत सी आँखें उलट पलट हो जायेंगी“।}
[अन्नूरः 36].

अर्थात वह परेशान होगा और उलटे पलटेगा,यही वह चीज़ है जो उसे अमल के लिये प्ररित करेगी,वे मुक्ति चाहते हैं,हलाक होने से घबराते हैं,और इस बात को लेकर डरे रहते हैं कि कहीं उन का कर्म पन्न (आमाल नामा) उन के बायें हाथ में न दे दिया जाये।

ख- प्रलोक मेंः

जो व्यक्ति अल्लाह तआला से डरेगा उसे अल्लाह का भय हर एक भलाई की ओर मार्ग दिखायेगा।

1- बंदा क़यामत के दिन अल्लाह तआला के अर्श की छाँव में होगा,रसूलुल्लाह ने फरमायाः «और व्यक्ति जिसे हैसियत वाली महिला बुलाये(व्यभिचारकरना चाहे) और वह कहे कि मैं अल्लाह से डरता हूँ..» (बुखारी),

और हदीस का ज़ाहिर ये बताता है कि वह अपनी जु़बान से कहे ताकि महिला अपनी हरकत से बाज़ आ जाये और वह अपने जी में सोचे,और उस पर जमा रहे,और सिद्धांतों की घोषणा के बाद उस से न पलटे,

«और ऐसा व्यक्ति जिस ने अल्लाह तआला का अकेले में याद किया और उस की आँखों से आँसू निकल पड़े..» (बुखारी),

अल्लाह तआला का वह डर जो आँखों को आँसू निकालने पर मजबूर कर दे क़यामत के दिन ऐसी आँख को आग छू भी नहीं सकेगी.

2-यह क्षमा के कारणों में से है,और नबी की हदीस इस पर गवाह हैः

«तुम से पहले एक आदमी था जिसे अल्लाह तआला ने धन दे रखा था,मरते समय उस ने अपने बेटों से कहाः मैं तुम्हारा कैसा बाप था?बेटोें ने कहा अच्छे बाप थे,बाप ने कहा मैं ने कभी अच्छा काम नहीं किया,इस लिये जब मैं मर जाऊँ तो मुझे जला देना और अधिक बारीक कर देना फिर जब आँधी आये तो उस में मुझे उड़ा देना,उन्होंने ऐसा ही किया,फिर अल्लाह तआला ने उसे इकðा किया,पूछा ऐसा करने पर तुझे किस चीज़ ने उभारा,जबाब दिया तेरे डर ने,तो अल्लाह तआला उसे अपनी दया में लेलेगा अर्थात उसे क्षमा कर देगा!!» (बुखारी),

अल्लाह तआला ने उस की जेहालत के कारण उसे विवश (माजू़र) समझा और उस के डर ने उस के रब से सिफारिश की,वरना तो जो व्यक्ति मरने के बाद दोबारा जीवित किये जाने को नहीं स्वीकारता वह काफिर है।

3- डरने वाले को डर स्वर्ग पहुँचाता है क्यांेकि नबी ने फरमायाः

«जो डरेगा वह रात के अंतिम भाग में सफर करेगा,और जो रात के अंतिम भाग में सफर करेगा वह मंजि़ल तक पहुँच जायेगा,सुनो अल्लाह तआला की पूँजी बहुत क़ीमती है, सुनो अल्लाह तआला की पूँजी स्वर्ग बहुत क़ीमती है» (त्रिमिज़ी).

4- क़यामत के दिन शांति,अल्लाहत तआला हदीसे कु़दसी में फरमाता हैः «मेरी इज़्ज़त की क़सम मैं अपने बंदे पर दो डर और दो शांति इकðा नहीं करूँगा,अगर वह मुझ से दुनिया में डरेगा तो मैं उसे क़यामत के दिन शांति दूँगा,और अगर मैं उसे दुनिया में शांति दूँगा तो उसे क़यामत के दिन डराऊँगा» (बैहक़ी)

5- अल्लाह तआला ने अपने इस जैसे कथन में अपने जिन बंदों के गुण बयान किये हैं उस में दाखिल होनाः {बेशक मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें, ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें,इताअत करने वाले मर्द और इताअत करने वाली औरतें,सच्चे मर्द और सच्ची औरतें,सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें,विनती करने वाले मर्द और विनती करने वाली औरतें,दान करने वाले मर्द और दान करने वाली औरतें,रोज़े रखने वाले मर्द और रोज़े रखने वाली औरतें,अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करने वाले मर्द और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करने वाली औरतें“।}[अल अहज़ाबः 35].

यह सब अच्छे शब्द हैं जिन्हें प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिये,

अल्लाह तआला ने फरमायाः {उन की करवटें अपने बिस्तरों से अलग रहती हैं,अपने रब को डर और उम्मीद के साथ पुकारते हैं,और जो कुछ हम ने उन्हें दे रखा है वह खर्च करते हैं,कोई पराणी नहीं जानता जो कुछ हम ने उन की आँखों की ठंडक उन के लिये छिपा रखी है,जो कुछ करते थे यह उस का बदला है“।}[अस्सज्दाः 16].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {भला वह इन्सान जो रातों के समय सज्दा और खड़े होने की हालत में इबादत में गुज़ारता हो,आखिरत से डरता हो और अपने रब की रहमत की उम्मीद रखता हो,बताओ तो आलिम और जाहिल क्या बराबर हैं,बेशक नसीहत वही हासिल करते हैं जो अक़लमंद हों“।}[अज़्ज़ुमरः 9].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {और जो अपने रब के अज़ाब से डरते रहते हैं बेशक उन के रब का अज़ाब बेखौफ होने की बात नहीं“।}
[अल मआरिजः 27-28].

और अल्लाह तआला ने अपने क़रीबी बंदो की प्रशंसा की है और वे पैग़म्बर हैं,क्यांेकि वे अल्लाह से डरने वाले हैंः {ये नेक लोग नेक अमल की ओर जल्दी दौड़ते थे,और हमंे चाहत और डर के साथ पुकारते थे“।}[अल अंबियाः 90].

बल्कि फरिश्ते स्वयं अपने रब से डरते हैं,अल्लाह तआला ने फरमायाः {और अपने रब से जो उन के ऊपर है कपकपाते रहते हैं और जो हुक्म मिल जाये उस के पालन करने में लगे रहते हैं“।}[अन्नहलः 50].

6- अल्लाह तआला की प्रसन्नताः {अल्लाह उन से खुश हुआ और ये उस से खुश हुये,यह है उस के लिये जो अपने रब से डरे“।}
[अल बय्यिनाः 8].

अल्लाह तआला का ज्ञान रखने वालों का डर

अल्लाह तआला को पहचानने वाले बंदे अपने अच्छे अमल और अल्लाह तआल से आशा करने के काराण निःसंदेह यही अल्लाह तआला से डरते और अधिक खौफ खाते हैं,उदाहरण के तौर परः

- नबी का नमाज़ की हालत में रोना,आप नमाज़ की हालत में इस प्रकार रोते कि रोने के कारण आप के सीने से हंडी पकने जैसी आवाज आती। (अहमद,अबूदाऊद,नसाई)।

-अबू बक्र अपनी ज़ुबान पकड़ कर कहतेः

«इसी ने मुझे हलाकत में डाला है»

और कहते

«ऐ काश में ऐसा पेड़ होता जिसे खालिया जाता»

उमर बिन खत्ताब कहतेः

«ऐ काश मैं कोई ऐसी चीज़ न होता जिस का जि़क्र किया जाता है,ऐ काश मेरी माँ ने मुझे पैदा ही न किया होता»,

और कहते

«अगर फुरात के किनारे कोई ऊँट मर जाता तो मुझे डर होता कि कहीं अल्लाह तआला क़यामत के दिन उस के बारे में मुझ से सवाल न करे»

और कहते

«अगर आसमान से पुकार लगाने वाला पुकार के कहताः ऐ लोगो तुम सब स्वर्ग में परवेश करने वाले हो सिवाय एक के तो मुझे डर होता कि वह एक मैं ही तो नहीं»!!

- उसमान बिन अफ्फान कहते हैंः

«मैं चाहता हूँ कि मर जाऊँ और दोबारा जीवित न किया जाऊँ»,

आप पूरी रात तस्बीह,नमाज़ और कऱ्ुआन की तिलावत में गुज़ार देते थे।

मुसलमानों की माँ आयशा रजि़अल्लाहु अन्हा अल्लाह तआला का यह कथन पढ़ती थींः {तो अल्लाह ने हम पर बड़ा उपकार किया,और हमें तेज़ गर्म हवाओं के परकोप से बचा लिया“।}[अŸाूरः 27].

अपनी नमाज़ में (पढ़तीं) पस वह अधिक रोती थीं..

{अगर तू इन को सज़ा दे तो यह तेरे बंदे हैं और अगर तू इन्हें माफ करदे तो तू ज़बरदस्त हिक्मत वाला है“।}[अल माइदाः 118].

डर के अह्काम और उस विषय में चेतावनीः

1- खशिय्या शब्द खौफ शब्द से खास है,खशिय्या का अर्थ जो अल्लाह तआला को पहचानते हुये डरेः {अल्लाह से उस के वही बंदे डरते हैं जो जानकार हैं,बेशक अल्लाह तआला ग़ालिब,और बड़ा माफ करने वाला है“।}[फातिरः 28].

डर जो ज्ञान के साथ मिला हुआ हो,नबी ने फरमायाः «अल्लाह की क़सम मैं तुम सब से अधिक परहेज़गार और अल्लाह से डरने वाला हूँ» (मुस्लिम),

और अल्लाह तआला,उस के नामों,उस की विशेषताओं,उस के कमाल और उस की महिमा के विषय में जानकारी के बक़द्र अल्लाह का डर और उस का खौफ होगा।

2- डर उस समय लाभदायक होगा जब वह मेहनत,अमल,और अफसोस अथवा गुनाहों के न करने के इरादे के साथ तोबा करने पर उभारे,तो डर अपराध की कुरूपता के ज्ञान और चेतावनी (वईद) के अनुसमर्थन और अल्लाह के ज्ञान से पैदा होता है जो बड़ा,महान और सर्वशक्तिमान है,और इस प्रकार अल्लाह का डर की कल्पना नहीं की जा सकती जो अमल,मेहनत और तोबा की ओर न बुलाये।

3- अल्लाह तआला से डरना यह वाजिबात में से एक वाजिब है,और यही ईमान का तक़ाज़ा भी है,और यह बेहतर मार्ग और दिल के लिये लाभदायक है,अथवा ये हर इन्सान के लिये अनिवार्य है,और गुनाहों,दुनियादारी,बुरी संगत,अचेतना और एहसासे कमतरी से बचाता है।

”अल्लाह से उस के वही बंदे डरते हैं जो जानकार हैं,बेशक अल्लाह तआला ग़ालिब,और बड़ा माफ करने वाला है“। {फातिरः 28}. जो अल्ल्लाह से डरेगा उसे कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकती,और जो अल्लाह के अतिरिक्त से डरेगा उसे कोई चीज़ लाभ नहीं पहुँचा सकती।

अल फुजे़ल बिन अयाज



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