जिस प्रकार तौहीद और ईमान का प्रभाव मोमिन के दिल में और उस के निजी व्यवहार में प्रकट हुआ उसी प्रकार लोगों के साथ उस के व्यवहार और स्वभाव में भी प्रकट होगा,नबी ने फरमायाः «नैतिकता को पूरा करने के लिये मुझे भेजा गया» (बैहक़ी),
बल्कि ईमान और स्वभाव के बीच संबंध जोड़ा,फरमायाः «ईमान के एतबार से सब से कामिल मोमिन वह है जिस का स्वभाव सब से उत्तम हो और वह अपने परिवार के रवैये में सब से अच्छा हो» (त्रिमिज़ी),
एकेश्वरवादी जो अल्लाह की निगरानी और बंदों पर उस के एहाते के विषय में सोचता है तो वह जीवन के विभिन्न विभागों में लोगों पर अधिक हमदर्दी और दया करेगाः
घर और परिवार मेंः
1- माँ बाप के साथ मामलाः
एकेश्वरवादी सब से अधिक माँ बाप की देख रेख करता है,और अल्लाह तआला ने अपनी किताब में अपनी इबादत के बाद माँ बाप के साथ एहसान करने का हुक्म दिया है,फरमायाः {और तेरा रब खुला हुक्म दे चुका है कि तुम उस के सिवाय किसी दूसरे की इबादत न करना और माता पिता के साथ अच्छा सुलूक करना,अगर तेरी मौजूदगी में इन में से एक या ये दोनों बुढ़ापे को पहुँच जायें तो उन को उफ तक न कहना,उन्हें डाँटना नहीं,बल्कि उन के साथ इज़्ज़तो एहतेराम से बात चीत करना,और नरमी और मुहब्बत के साथ उन के सामने इन्केसारी के हाथ फैलाये रखना,और दुआ करते रहना कि हे मेरे रब इन पर ऐसे ही रहम करना जैसा कि इन्होंने मेरे बचपन में मेरा पालने पोसने में किया है,जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे तुम्हारा रब अच्छी तरह जानता है,अगर तुम नेक हो तो वह तोबा करने वालों को माफ करने वाला है“।}[अल इस्राः 23-25].
और अल्लाह तआला फरमाता हैः {हम ने हर इन्सान को अपने माता पिता से अच्छा सुलूक करने की शिक्षा दी है,लेकिन अगर वे यह कोशिश करें कि तुम मेरे साथ उसे शामिल करलो जिस का तुम को इल्म नहीं तो उन का कहना न मानो,तुम सब को लौट कर मेरी ही ओर आना है,फिर मैं हर उस बात से जो तुम करते थे,तुम्हें आगाह कराऊँगा“।}[अल अनकबूतः 8].
2- बेटों के साथ मामलाः
बेटे दुनियावी सजावट हैं,फिर भी अल्लाह तआला ने उन के विषय में फरमायाः {माल और अवलाद तो दुनियावी जि़ंदगी की ज़ीनत हैं“।}[अल कहफः 46].
मगर तौहीद जो मोमिन के दिल में है मोमिन को अपनी अवलाद की शिक्षा और तरबियत की ओर बुलाता है,और अल्लाह तआला ने मोमिनों को ईमान वाला कह कर पुकारा कि वह स्वयं को और अपने परिवार वालों को नरक के आग से बचायें,फरमायाः {ऐ ईमान वालो तुम खुद अपने को और अपने परिवार वालों को उस आग से बचाओ जिस का ईधन इन्सान और पत्थर हैं,जिस पर कठोर दिल वाले सख्त फरिशते तैनात हैं,जिन्हें जो हुक्म अल्लाह देता है उस की नाफरमानी नहीं करते, बल्कि जो हुक्म दिया जाये उस का पालन करते हंै“।}[अŸाहरीमः 6].
अवलाद की तर्बियत को हर निगहबान की जि़म्मेदारी बना दिया है,आप ने इर्शाद फरमायाः «तुम में का हर व्यक्ति उत्तरदायी है और तुम में हर एक से उस की रिआया के बारे में पूछा जायेगा,खलीफा उत्तरदायी है,उस से उस की प्रजा के बारे में पूछा जायेगा,मर्द अपने घर का उत्तरदायी है,उस के बारे में उस से पूछा जायेगा,औरत अपने पति के घर की उत्तरदायी है,उस से उस के बारे में पूछा जायेगा,नोकर अपने मालिक के के माल का उत्तरदायी है,उस से उस के बारे में पूछा जायेगा,तुम सब उत्तरदायी हो,अपनी अपनी प्रजा के बारे में पूछे जाओगे।» (बुखारी).
3- पत्नी के साथ मामलाः
एकेश्वरवादी अपनी बीवी का हक़ अदा करता है, अल्लाह से डरता है और इस विषय में और उस के हुकू़क अदा करने में और उस के संग भलाई करने के बारे में यह विश्वास रखता है कि अल्लाह तआला सब कुछ देख रहा है,अल्लाह तआला ने फरमायाः
{औरतों के भी वैसे ही हक़ हैं जैसे उन पर मर्दों के हैं अच्छाई के साथ“।}[अल बक़राः 228].
नबी ने कहाः «तुम में अच्छा वह व्यक्ति है जो अपने परिवार के लिये अच्छा हो और मैं अपने परिवार के लिये सब से अच्छा हूँ..» (त्रिमिज़ी),
और जब महिलायंे नबी के पास आकर अपने पतियों की शिकायत करने लगीं तो आपने फरमायाः «तुम में बेहतर वे हैं जो अपनी औरतों के लिये बेहतर हों» (इब्ने माजा).
4- पति के साथ मामलाः
ईमान वाली महिला के भीतर तौहीद अल्लाह का भय पैदा करता है जिस के कारण वह अपने रब की जन्नत की प्राप्ति के लिये अपने पति के हुकू़क को अदा करती है,नबी ने फरमायाः «जब औरत पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ ले,और रमज़ान के रोज़े रख ले,अपनी शर्मगाह की हिफाज़त कर ले और अपने पति की बात माने तो उस से कहा जायेगाः तू जिस द्वार से चाहे जन्नत मंे प्रवेश कर ले» (अहमद),
और अल्लाह तआला ने उसे इस बात का आदेश दिया है कि वह पति को उन चीज़ों का मुकल्लफ न करे जिस की वह ताक़त नहीं रखता,अल्लाह तआला ने फरमायाः {धन वाले को अपने धन के अनुसार खर्च करना चाहिये,और जिस की जीविका उस के लिये कम की गई हो तो उस को चाहिये कि जो कुछ अल्लाह ने उसे दे रखा है, उसी में से दे,किसी इन्सान पर अल्लाह बोझ नहीं रखता लेकिन उतना ही जितनी ताक़त उसे दे रखी है,अल्लाह ग़रीबी के बाद माल भी अता करेगा“।}[अŸालाक़ः 7].
और बिना किसी कारण के वह अपने पति से तलाक़ न माँगे,नबी ने फरमायाः «जिस औरत ने अपने शौहर से बिना किसी कारण के तलाक़ माँगा उस पर जन्नत की खुशबू हराम है» (अहमद).
रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथः
रिश्ता नाता जोड़ना और पड़ोसी का हक़ः
अल्लाह तआला ने अकेले अपनी इबादत,अपनी तौहीद,और एकेश्वरवादी का स्वभाव उस के क़रीबी रिश्तेदार,संबंधियों अथवा उस के पड़ोसियों के बीच जोड़ा है (एक साथ बयान किया है),अल्लाह तआला ने फरमायाः {और अल्लाह की इबादत करो,उस के साथ किसी को शरीक न करो,और माँ बाप, रिश्तेदारों, यतीमों,गरीबों,क़रीब के पड़ोसी,दूर के पड़ोसी और साथ के मुसाफिर के साथ और मुसाफिर और जो तुम्हारे ताबे हैं उन के साथ भीएहसान करो,बेशक अल्लाह डींग मारने वाले,घमंडी से मुहब्बत नहीं करता“।}[अन्निसाः 36].
और अल्लाह तआला ने फरमायाः {”तो क़रीबी रिश्तेदार को,ग़रीब को,मुसाफिर को,हर एक को उस का हक़ दो,यह उन के लिये बेहतर है,जो अल्लाह के मुंह की जि़यारत करना चाहते हों,ऐसे ही लोग नजात हासिल करने वाले हैं“।}[अर्रूमः 38].
और नबी ने फरमायाः «जिस व्यक्ति का अल्लाह और प्रलोक पर ईमान है उसे पड़ासियों के संग अच्छा व्यवहार करना चाहिये..» (मुस्लिम),
काम में और सभी लोगों के साथः
ईमान एकेश्वरवादी के दिल में सृष्टि के संग अच्छे व्यवहार और लोगों के लिये अच्छी चाहत और मामले में सच्चाई पर उभारता है,और यह सब उन श्रेष्ट कार्यों में से हैं जिन के ज़रिये बंदा अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त करता हैः
1- अच्छा व्यवहारः
अल्लाह तआला ने अपने नबी की प्रशंसा करते हुये फरमायाः {और बेशक आप बहुत स्वभाव पर हैं“।}{अल क़लमः 4}.
और नबी ने फरमायाः «सब से अधिक वह चीज़ जो लोगों को जन्नत में प्रवेश करवायेगी वह अल्लाह का भय और अच्छा व्यवहार है» (त्रिमिज़ी),
और नबी ने फरमायाः «अल्लाह तआला के निकट सब से प्रिय वह व्यक्ति है जो लोगों को अधिक लाभ पहुँचाने वाला हो,और अल्लाह तआला के निकट सब से प्रिय कार्य मुसलमान को खुश करना,या उस की परेशानी दूर कर देना,या उस के क़र्ज़ का भुगतान करना है,
या उस की भूक मिटाना है,और मैं अपने भाई की आवश्यक्ता पूरी करने के लिये निकलूँ यह मुझे इस से कहीं अधिक प्रिय है कि मैं इस मस्जिद अर्थात मदीना की मस्जिद में एक महीने तक एतक़ाफ करूँ» (तबरानी)
2-सच्चाई,अल्लाह तआला ने फरमायाः {ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ रहो“।}[अŸाोबाः 119].
और नबी ने फरमायाः «निःसंदेह सच्चाई नेकी की राह दिखाती है और नेकी जन्नत की राह दिखाती है और बेशक आदमी सच बोलता है यहाँ तक कि वह सच्चा हो जाता है,और झूट बुराई की राह दिखाती है और बुराई जहन्नम की राह दिखाती है,और आदमी झूट बोलता है यहाँ तक कि अल्लाह तआला के निकट उसे झूटा लिख दिया जाता है» (बुखारी),
और नबी ने फरमायाः «मुनाफिक़ की तीन निशानियाँ हैंः जब बोले झूट बोले और जब वादा करे तो तोड़ दे और जब उस के पास अमानत रखी जाये तो खयानत करे» (बुखारी).
3- नसीहत करना और धोका न देना, नबी ने फरमायाः
«जिस व्यक्ति को अल्लाह तआला ने उस की क़ौम का निगहबान बनाया हो,और जब उस मौत आये तो उस समय इस हाल में मरा हो कि वह अपनी रिआया को धोका देता रहा हो तो अल्लाह तआला उस पर जन्नत को हराम कर देगा» (मुस्लिम),
और नबी गल्ले के एक ढेर के पास से गुज़रे,अपना हाथ गल्ले में डाला तो आप की उंगलियाँ तर हो गईं आप ने पूछाः «ऐ गल्ले वाले माजरा क्या है? कहने लगा वर्षा के कारण ऐसा हुआ है ऐ अल्लाह के रसूल,आप ने फरमायाः तुम ने इसे गल्ले के ऊपर क्यों न रखा ताकि लोग देखते,जिस ने धोका किया वह मूझ से नहीं» (मुस्लिम).
जिस नबी ने अपनी उम्मत को इस्तिन्जा का नियम सिखाया उस ने अपनी उम्मत को तौहीद न सिखाया हो यह सोचना भी असंभव है,और तौहीद जिस के बारे में नबी का कथन हैः ” मुझे इस बात का हुक्म दिया गया कि मैं लोगों से जंग करूँ यहाँ तक कि वे लाइलाहा इल्लल्लाह कह लें “ (बुखारी),तौहीद की हक़ीक़त यही है कि इस की वजह से जान और माल महफूज़ हो जाते हैं।इमाम मालिक बिन अनस