बेशक अल्लाह तआला अस्समद है..
{कह दीजिये कि वह अल्लाह एक है,अल्लाह बेनियाज़ है“।}[अल इख्लासः 1-2].
”अस्समद“...
अपने नामों और विशेषताओं में संपूर्ण है,उस में किसी प्रकार की कोई कमी और कोताही प्रवेश नहीं कर सकती।
”अस्समद“...
वह बेनियाज़ है उस के सब मुहताज हैं और वह किसी का मुहताज नहीं। {वह खिलाता है और खिलाया नहीं जाता“।}[अल अनआमः 14].
”अस्समद“
वह पालनहार,उपाय करने वाला,मालिक और तसर्रुफ करने वाला है।
” अल वाहिद अल अहद“ वह अल्लाह जो अपने तमाम पूर्णता में अकेला है,इस प्रकार कि इन पूर्णताओं में उस का कोई साझी नहीं,और बंदों पर यह अनिवार्य है कि अक़्ल के एतबार से,ज़ुबान के एतबार से और अमल के एतबार से अल्लाह तआला की यकताइयत को स्वीकारें,अर्थात वे अल्लाह तआला की निरपेक्ष पूर्णता और यकताइयत में अकेले होने को स्वीकार करें और हर प्रकार की इबादत का योग्य केवल उसी को जानें।”अस्समद“
ज़रूरत के समय दिल उस की ओर मुतवज्जेह होते हैं तो वह उन्हें देता है, मना नहीं करता है,परेशानियों के समय दिल उसे पुकारते हैं तो वह उन की पुकार क़बूल करते हुये उन की परेशानियों को दूर करता है,उस से कटे हुये लोग जब उसे पुकारते हैं तो वह उन्हें जोड़ लेता है,और डरे हुये लोग उस का इरादा करते हैं तो वह उन्हें शांति देता है,और एकेश्वरवादी उस से आशा लगाते हैं तो वह उन की मुरादें पूरी करता है,दुखी लोग उस से प्रार्थना करते हैं तो वह उन्हे दुखों से मुक्ति देता है,और बंदे उस की ओर झुकते हैं तो अल्लाह तआला उन के मरतबे को ऊँचा करता है।
बेशक अल्लाह तआला अस्समद है..
”अस्समद“ वह ज़ात है जिस का इरादा संपूर्ण मखलूक़ अपनी ज़रूरतों,आवश्यक्ताओं और तमाम हालतों मे करती है,क्योंकि उसे अपनी ज़ात,अपने नामों,अपनी विशेषताओं और अपने कार्यों में हर प्रकार की पूर्णता प्राप्त है।